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दो दोस्त और तितली (Two friends and butterfly)

राजू  और सोनू  नाम के दो दोस्त होते है। वो हर पल साथ रहा करते थे एक दूसरे का साथ भी देते थे। एक दिन वो दोनों एक पार्क में बैठे थे। अपनी बातो में लगे थे। सोनू की अचानक एक पौधे पर जाती है। पौधे के नीचे पत्तों व घास 

में एक अड़ा पड़ा हुआ है। तो सोनू देखने चला जाता है। और राजू को भी कहता है यार इस में से बच्चा निकलेगा अब तो पता नहीं किसी का अड़ा है यह वो दोनों देखने लगते है और कहते है की इस में कौन सा जीव या प्राणी है ,

वो दोनों वही बैठे जाते है और देखने लगते है वो दोनों लगातार चलता रहा सुबह से दोपहर हो गई और दोपहर से शाम लेकिन वह अड़ा से बाहर नहीं निकल पाया था। हालकि उसके लगातार प्रयास से अड़ा जगह -जगह से टूट गया था। और तितली का थोड़ा -सा मुँह बाहर निकल आया था। यह कोशिश इसी तरह लगातार दिन -रात चलती 

रही। कई दिन बीत गये , परन्तु तिल्ली अभी भी अड़े से बाहर नहीं निकल पाई थी। राजू उसे देखता रहता था। राजू को उस पर बड़ी दया आ रही थी कि वह प्राणी दिन -रात मेहनत कर रहा है और अड़े से बाहर आना चाह रहा है,परन्तु अड़ा तो थोड़ा -थोड़ा करके ही टूट रहा है। राजू को लगा की उसके लिए कुछ करना चाहिए ,परन्तु सोनू ने 

राजू से कहा की तुम इधर -उधर अपना ध्यान मत जाने देना यार में पानी ले कर आता हूँ जब तक यह बैठे रहना यह अपने आप ही निकलेगी तू मत निकलना यार पर राजू से रहा नहीं जाता राजू को मौका मिलते ही राजू उस अपने हाथ में ले लेता है और खुश होने लगता है। और बाहर निकले लेता है। राजू सोचने लगता है मैं तितली पर दया 

दिखाते हुए और सोचता है इतने में सोनू आ जाता है और देखता है राजू को अपने हाथ में लिए बैठा था। और सोनू से कहता है इसकी जान बचा ली,मैं परतुं वह तितली मुशिकल से  2,3 घटे तक जीवित रही और फिर मर गई। राजू को बहुत दुःख हुआ वह समझ नहीं पाया की आखिर ऐसा क्यों हुआ। 

उसने सोनू से पूछा की सोनू ऐसा क्यों हो गया। सोनू बोला तुमने उस तिल्ली की पीड़ा देखी, जबकि वास्तव में वह पीड़ा थी, जिससे उसके पखों में मजबूती आ रही थी और तुमने क्या किया वो बार- बार अड़े पर प्रहार किए जा रही थी ,जिससे उसके पखों को मजबूती आ रही थी और कुछ दिन बाद उसके पैर मजबूत हो भी जाते , वह खुद से उस अड़े को तोड़ पाती ,फिर वह आजाद होकर घूमती =फिरती ,फूलो का आनद लेती। तुमने इस अड़े को जीवन देने के बजाय इसका जीवन ले लिया। 

दोस्तो !इस छोटी -सी कहानी का सार यह है की तलिफ़ झेलने या सघर्षे करने के बाद जो सफलता प्राप्त होती है ,वह स्थायी होती है और बिना सघर्षे के जो सफलता मिलती है

 

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