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जीवन जीने के सूत्र (Ways of living)

हमारे जीवन में बहुत कुछ है पर आज के समय में मन अशान्त है। तो व्यक्ति को किसी चीज़ से ख़ुशी नहीं मिल सकती है। इसलिए भागते -दौड़ते ससार में खुद को कैसे शांत रखा जाए आइए जानते है। 

प्रकृति से सीखिए शांत रहने का सबक 

हमारे बाहर होने वाले शोर के सम्मान ही आदर विचारों का शोर रहा करती है। बाहर होने वाली शक्ति के सम्मान ही अंदर शान्ति हो करती है आपके आस पास जब कभी भी थोड़ी -सी भी शांति हो ख़ामोशी आपके अंदर की शांति को जगा देती है क्योकि केवल शांति के माध्यम से ही आप खामोशी को जान सकते है। इस बारे में सावधान रहिए की जब आप अपने आस पास की ख़ामोशी पर ध्यान दे रहे हो तब आप कुछ भी न सोच रहे हो कभी किसी पेड़ ,पौधे को देखिए वे कितने शांत है। यह हमें प्रृकति से सीखना चाहिए। 

सबधो को देखिए निष्कर्ष पर न पहुँचे 

हमें कितनी जल्दी से किसी के बार में राय बना लेने में हम कितनी जल्दबाजी करते है जबकि हर व्यक्ति खास तरफ से सोचते और बर्ताव करने  लिए सस्कारित हुआ है। इन सस्कार अनुवशिक भी  होते है और अनुभवों और सस्कृति के वातावरण से भी पड़ते है। जिसमे वह पल -बढ़ा होता है। इस कारण  किसी  से शिकायत भी होती है। जब कोई इंसान   आपके पास आता है तो आप अब में विद्यमान रहते हुए उस इंसान स्वागत सम्मानीय अतिथि के रूप  करते है आप जब आप हर किसी को जैसा वह है। वैसा रहने देते है तब उस इंसान में सुधार आने लगते है। और जाहिर है खुद के जीवन में भी शांति आती है। खुद को बदलो गए तो सब कुछ अच्छा और शांति का अनुभाव कर सकते हो। 

अपने वर्तमान से कर लीजिए मित्रता 

हमें जीवन में एक पल यानि एक ऐसी  चीज़ है। जिससे से आप बचकर कभी नहीं निकले सकते है यही पल आपके जीवन का स्थायी प्रतिनिधि में है।  भले ही आपके जीवन में कितना भी बदलाव आने लगे जाए यही एक बात है जो की निशिष्ट रूप से हमेशा ही रहती है। इसलिए अब से अलग बचा ही नहीं जा सकता तो फिर इसका स्वागत क्यों न किया जाए ,इसके साथ मित्रवत क्यों न रहा जाए वतर्मान के समय के साथ जब आप दोस्ती रहते हो तब आप चाहें जहाँ हो घर जैसा महसूस करते है। और आप चाहें कही भी चलें जाए आप बेचैनी ,परेशानी व्याकुलता में ही रहे होंगे इस समय के प्रति निष्ठावान होने का अर्थ है। 

कुछ देर ऊबे रहे तो शांतहोगा दिमाग 

हमारा मन में हमेशा ही कुछ ना कुछ कमी होती है अभी और बहुत कुछ चाहिए उस अवस्था में रहने लगता है। इस कर रहने से हमें लालसा करते है। जब हमारा मन के साथ तडपमय में हो जाते है। तब आप जल्दी ही ऊब जाते हो जल्दी ही बेचैन हो जाते है।  लेकिन मन का पेट कभी नहीं भरता जब हमें ऊब होता है तो किस से बात कर लेते है सोशल मिडिया देखकर मन की भूख कभी कम नहीं होती हमें कही समस्या से गिर जाते है और खुद के बार में सोच नहीं पाते विचार से ऊपर उठता या विचार के पार जाना इसका सीधा -सादा अर्थ यह है। की हमें विचार के साथ पूरी तरह से तदपम्य में न हो जाए की हम विचार के गुलाम न हो।


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